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और श्रष्टि वाले जो नए चहेरे ढूडने की कोशिश कर रहे हैं और अपनी इस कपटी
मानसिकता में स्कूल के बच्चों को भी शामिल कर लिया है – ये नए लोगो को ढूँढ कर –
उनसे उनका बहुमूल्य पारंपरिक ज्ञान व् अविष्कार की समस्त जानकारी ले कर अपनी लिस्ट
बढाने और सरकारी दान पाने के अलावा फिर उस चेहरे को इतना गहरे गर्त में छुपा देते
हैं की वो ज़िंदा तो रहता है पर उसकी आती – जाती हर साँस उसके स्वयं के विवेक को
कोसती रहती है – इनसे आस लगाये हर सक्स की मंशा निराशावादी और आत्मघाती हो जाती है
– न् जाने कितने तो मर लिए उम्मीद में ! फिर वो चाहे बिहार के सईदोल्लाह की तरह बीबीसी
को रोये या अपनी किस्मत को – निफ और श्रस्टी वाले अपनी पूरी ताकत इस बात में लगाते
हैं की केसे उनकी संस्था या संस्थाएं तरक्की करें न् की इनोवेटर या फिर कोई अन्य –
पिछले लगभग 14 सालों में मेरा [ अगस्त्य नारायण
शुक्ल का ] निजी अनुभव तो यही रहा है !
और
इस सब ये आईआईएम अहमदाबाद व् साइंस एवम टेक्नोलोजी की पूरी मदद लेते हैं माशेलकर
साहेब की ओट में प्रोफ़ेसर अपना ही राग अलापते हैं – ये सब लोग तो लायक भी नहिं हैं
तथाकथित ग्रास्रूट्स लेवल की सहायता करने में अथवा उनकी मानसिकता समझने में !
अंत में बस इतना की हर शाख पे उल्लू बैठे हैं
, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा ?
अगस्त्य
इंसान अपनी ही बनायी कहावत की तरह संसार का
जला हूआ परमात्मा को भी फूंक फूंक कर पीने की कोशिश करता है !
अगस्त्य
" The Problems That Exist
in The World Today Can Not Be Solved By The
Level of Thinking That Created Them "
"ALBERT EINSTEIN"
Level of Thinking That Created Them "
"ALBERT EINSTEIN"