खून में प्लेटलेट्स किस
तरह बढ़ाएँ ?
कई तरह के रोगों में खून में प्लेटलेट्स बहुत तेज़ी से कम होने लगती है , और
इसी लिए कई बार मरीज़ की मौत भी हों जाती है !
मैं बहुत ज़्यादा तो नहीं जानता पर मेरी खुद की आजमाई हूई तरकीब बता रहा हूँ
-: गिलोय की बेल को जो की मोटाई में ½ इंच के आस पास हों का
लगभग 1 फीट टुकड़ा लेकर उसे छोटे छोटे टुकडों में काट कर साफ़
पानी से धो कर – लगभग 1/2 लीटर पानी में दस मिनट तक उबालें [ स्वाद के लिए उबालते वक्त चीनी मिला
सकते हैं ] और पूरी रात उस बर्तन को ढंककर रखें, सुबह उसमे और 1/2 लीटर सादा पानी मिला कर इक कांच की बोतल में
भर कर रख लें !
मरीज़ को 100 मिलीलीटर इस घोल के साथ
1 चमच्च ओ आर एस [
ORS ] का पाऊडर और 1 चमच्च ग्लूकोस और 100 से 150 मिलीलीटर साफ़ पानी मिला कर मरीज़ को दिन में
कम से कम तीन बार दें !
इसी में अगर पपीते का 1 पत्ता भी इसी प्रकार
तयार कर साथ में दें तो और भी फायदे की उम्मीद हों सकती है ! इसमें अन्य
जानकारियाँ इस प्रकार हैं -: गिलोय एक ऐसी लता है जो भारत में सवर्त्र पैदा होती
है। नीम के पेड़ पर चढ़ी गिलोय
औषधि के रूप में प्राप्त करने में बेहद प्रभाव शाली है। अमृत तुल्य उपयोगी होने के
कारण इसे आयुर्वेदमें अमृता नाम
दिया गया है। ऊंगली जैसी मोटी धूसर रंग की अत्यधिक पुरानी लता
औषधि के रूप में प्रयोग होती है।
गिलोय का वैज्ञानिक नाम 'टीनोस्पोरा
कार्डीफोलिया' (Tinospora cordifolia) है। इसे अंग्रेज़ी में गुलंच कहते हैं। कन्नड़ में अमरदवल्ली, गुजराती में गालो, मराठी में गुलबेल, तेलुगू में गोधुची,
तिप्प्तिगा, फारसी में गिलाई, तमिल में शिन्दिल्कोदी आदि
नामों से जाना जाता है। गिलोय में ग्लुकोसाइन, गिलो इन,
गिलोइनिन, गिलोस्तेराल तथा बर्बेरिन नामक एल्केलाइड पाये
जाते हैं। गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी
जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद
में इसका महत्त्वपूर्ण स्थान है। गिलोय को वात दोष हरने वाली
श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि
के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धाते विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन
आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन
क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें
मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है। सचमुच
यह प्राकृतिक ‘कुनैन’ है। इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार
के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य, क्षय (टीबी), मूत्र रोग, एलर्जी, उदर रोग,मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक व्याधियों से
बचाता है। गिलोय भूख भी बढ़ाती है। इसकी तासीर गर्म होती है। एक बार में गिलोय की
लगभग 20 ग्राम
मात्रा ली जा सकती है। इसके सेवन के बारे में किसी योग्य व्यक्ति या वैद्य या किसी
अच्छी पुस्तक से जानकारी ली जा सकती है। इसे आवश्यकतानुसार अकेले या अन्य औषधियों
के साथ दिया जाता है। अनेक रोगों में इसे पशुओं के रोगों में भी दिया जाता है
! गिलोय
हमारे यहां लगभग सभी जगह पायी जाती है। गिलोय
को अमृता भी कहा जाता है .यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है , जो इसका प्रयोग करे . कहा जाता है
की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी , वहां वहां गिलोय उग गई . यह
मैदानों, सड़कों
के किनारे, जंगल, पार्क, बाग-बगीचों, पेड़ों-झाड़ियों और दीवारों पर लिपटी
हुई दिख जाती है। इसकी बेल बड़ी तेजी से बढ़ती है। इसके पत्ते पान की तरह बड़े आकार
के हरे रंग के होते हैं। गर्मी के मौसम में आने वाले इसके फूल छोटे गुच्छों में
होते हैं और इसके फल मटर जैसे अण्डाकार, चिकने
गुच्छों में लगते हैं जो बाद में पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। गिलोय के बीज
सफेद रेग के होते हैं। जमीन या गमले में इसकी बेल का एक छोटा सा टुकड़ा लगाने पर भी
यह उग जाती है और बड़ी तेज गति से स्वछन्द रूप से बढ़ती जाती है और जल्दी ही बहुत
लम्बी हो जाती है।
गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। यहएक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।
गिलोय को अमृता, गड़ूची, मधुपर्जी आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। कुछ तीखे कड़वे स्वाद वाली गिलोय देशभर में पायी जाती है। आयुर्वेद में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य चरक ने गिलोय को वात दोष हरने वाली श्रेष्ठ औषधि माना है। वैसे इसका त्रिदोष हरने वाली, रक्तशोधक, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली, ज्वर नाशक, खांसी मिटाने वाली प्राकृतिक औषधि के रूप में खूब उपयोग किया जाता है। यहएक झाडीदार लता है। इसकी बेल की मोटाई एक अंगुली के बराबर होती है इसी को सुखाकर चूर्ण के रूप में दवा के तौर पर प्रयोग करते हैं। टाइफायड, मलेरिया, कालाजार, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातु विकार, यकृत निष्क्रियता, तिल्ली बढ़ना, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। रोगों से लड़ने, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।